कम खर्च में विदेश की सैर करनी है तो जरूर जाएँ नेपाल

0
2889
|| मेरी नेपाल यात्रा – यात्रा संस्मरण ||
अभी राजधानी काठमांडू पहुँचने के लिये दुर्गम रास्ता तय करना बाकी था। चढ़ाई, घाटी के टेढ़ी मेढ़ी काली सर्पीली सड़कें किनारे की खाई को देखकर रास्ता दुर्गम लग रही थी। पर उधर से ध्यान हटाने पर ऊँचे पहाड़ों पर घने जंगलों का प्राकृतिक दृश्य नयनाभिराम लग रहे थे। 

लेखक: प्रो0 श्रीकांत राय भट्ट/ खुशरूपुर, पटना

वर्षों से मेरी अभिलाषा थी नेपाल यात्रा की। आज भगवान पशुपतिनाथ की कृपा से अकेले नही, बल्कि 51 लोगों का एक ग्रुप लेकर जाने का अवसर प्राप्त हुआ। 10 जून 2018 की रात्रि 11:20 बजे हमारी बस चल पड़ी पटना से काठमांडू की ओर।
अब हमारे टूर ऑपरेटर सामने आये। उन्होंने बस में बैठे सभी यात्रियों को एक दूसरे से परिचय कराया। लोग उत्सुक होकर उनकी बातों को सुन रहे थे। आरामदायक बस धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ रही थी। टूर ऑपरेटर आगे के कार्यक्रम की घोषणा करते जा रहे थे। हमारा अगला पड़ाव कहाँ होगा? हम कहाँ फ्रेस होंगे और सुबह का नाश्ता कहाँ करेंगे? कहाँ दोपहर का भोजन होगा? हम काठमांडू पहुँच कर किस होटल में रात्रिभोज एवं विश्राम करेंगे? हमारी किचेन टीम भी साथ है। प्रथमिक उपचार एवं दवाओं की व्यवस्था भी साथ में उपलब्ध है। विशेष परिस्थिति में वरिष्ठ नागरिकों के लिये सशुल्क ह्वील चेयर भीी मिल जाएगी।
 
अब धीरे धीरे रात गहराने लगी। बस तेज रफ्तार से आगे की ओर भागती जा रही थी। आरामदेह बोल्वो एयर सस्पेंशन एसी बस। टूर ऑपरेटर की मीठी उद्घोषणा को सुनते-सुनते लोग नींद के आगोश में आ चुके थे। अब बस में खर्राटें गूंजने लगे थे।
किचेन टीम जब साथ हो: सुबह जब आँखे खुली, तो देखा हम सरहद पर रक्सौल पहुँच चुके थे। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार हमारी बस “होटल बोर्डर किंग” के परिसर में खड़ी हो चुकी थी। ग्रुप के सभी यात्री “इजिगेट होलिडेज” की ओर से बुक होटल के कमरे में चाट प्लान के अनुसार पहुँच चुके थे। फ्रेश हो कर यात्रीगण हॉल में इकठ्ठा होने लगे। इधर हमारी किचेन टीम अपने कार्य में व्यस्त थी। अब नमकीन के साथ चाय आ चुकी थी। नमकीन के साथ चाय की चुस्कियाँ लेते हुए हम सब आपस में बातें करने लगे। एक अजीब मस्ती का आलम था। आपस मे आत्मीय सम्बन्ध बन चुका था। अब टूर ऑपरेटर औऱ टूरिस्ट से बढ़कर एक पारिवारिक माहौल बन गया था। इस टूर में बच्चे, बूढ़े, नौजवान और महिलाएं सभी शामिल थे। आपसी कोई भेदभाव नहीं।
अब हमारी सक्रिय किचेन टीम हमारे सामने थी। छोले-कचौड़ी और अंचार के साथ काला जामुन प्लेट में परोसा गया। स्वादिष्ट नास्ते के बाद हम सब दो घन्टे के विश्राम के लिये अपने-अपने कमरे में चले गये।
 
अब दो घन्टे का वक़्त समाप्त हो चुका था। टूर ऑपरेटर के द्वारा बजाए गए विशिल की आवाज कानों में सुनाई पड़ी। सभी यात्री बस में सवार हुए। हमारी बस हमे लेकर रक्सौल से वीरगंज नेपाल बॉर्डर के पास पहुची। यहाँ विदेश में प्रवेश के पहले कुछ सरकारी प्रक्रिया पूरी करनी थी। जहां हमारा कम्पनी टूर मैनेजर पहले से कागजी प्रक्रिया के लिये तैयार खड़े थे। 51 यात्रियों का वोटर आईडी एवं बस के परमिट आदि की जांचे में डेढ़ घंटे का वक़्त लग गया। तब तक बस खड़ी रही। लोग वीडियो पर फ़िल्म का लुत्फ उठाते रहे।
 
नयनाभिराम घने जंगल: अब हम नेपाल में प्रवेश कर चुके थे। बीरगंज बॉर्डर से काफी दूर नेपाल के सुरम्य घने जंगलों से गाड़ी गुजर रही थी। कहा जाता है कि वन्य पशुओं से भरा इस जंगल में बाघ और गेंडा बहुतायत पाए जाते हैं। कभी-कभी सड़क के आर पार होते हुए ये खूंखार जानवर दिखाई पड़ जाते हैं।
ऊँचे घने जंगलों से भरे पहाड़ों, लम्बी सुरम्य घाटियों और डरावनी खाइयों को पार करते हुए काफी दूरी तय कर बस हम लोंगो को लेकर हथौन्दा पथलिया मार्ग स्थित मैत्री रेस्टुरेंट पहुँची। जहाँ दोपहर का भोजन करना तय था। हमारी किचेन टीम लगन के साथ भोजन तैयार करने में जुट गई। कुछ ही देर बाद रेस्टुरेंट के किचेन एरिया से सूचना आई कि अब भोजन तैयार है। सभी यात्रियों के सामने भोजन का प्लेट परोसा गया। महीन बासमती चावल, अरहर दाल, शुद्ध देशी घी, आलू पटल की सब्जी, पापर, दनौरी और अंचार। क्या स्वादिष्ट भोजन था। लग रहा था पिकनिक या शादी ब्याह का भोज हो।
 
अभी राजधानी काठमांडू पहुँचने के लिये दुर्गम रास्ता तय करना बाकी था। चढ़ाई, घाटी के टेढ़ी मेढ़ी काली सर्पीली सड़कें किनारे की खाई को देखकर रास्ता दुर्गम लग रही थी। पर उधर से ध्यान हटाने पर ऊँचे पहाड़ों पर घने जंगलों का प्राकृतिक दृश्य नयनाभिराम लग रहे थे। अब शाम ढलने लगी थी। खाइयों में बादल दिखने लगे थे। सड़क बादलों से ढंकने लगी थी। काले घने बादल ऊँचे पहाड़ों से टकराने लगे थे। वर्षा की बूंदें झड़ने लगी थी। यह दृश्य हमें पिछले साल किये गए मेघालय यात्रा की याद दिलाने लगा था।
 
इन्ही यादो में खोये, मनोरम दृश्यों को देखते जा रहे थे। काफी चढ़ाई के कारण हमारी बस की रफ्तार धीमी हो चुकी थी। टेढ़ी-मेढ़ी सड़क पर गाड़ी रेंगती हुई आगे बढ़ रही थी। अस्ताचलगामी सूर्य अब पहाड़ के पीछे छिपता जा रहा था। देखते-देखते सूर्यास्त हो चुका था। निशा रानी का साम्राज्य पृथ्वी पर फैल चुका था। हमारी गाड़ी धीरे-धीरे पहाड़ की ऊंचाइयों पर चढ़ते जा रही थी।
 
काली अंधेरी रात में घने जंगलों पहाड़ो के बीच गाड़ी की रोशनी लग रही थी मानो रात्रि के काली फैली अंचल छेद करती हुई आगे की ओर बढ़ती जा रही हो। कुछ ही देर बाद बिजली की कौंध धुन्ध सी दिख ने लगी। हम सब अंदाज लगा रहे थे कि कोई शहर आने वाला है। इसी बीच ड्राइवर ने ने एलान किया, अब काठमांडू आने वाला है।
 
देखते ही देखते हम सब काठमांडू पहुँच गए। रात्रिभोज के बाद हम लोग अपने अपने होटल के कमरे में रात्रि विश्राम के लिये चले गये। काठमांडू के दो होटलों में ठहरने की व्यवस्था थी। होटल पशुपति प्लाजा एवं होटल शिवम प्लाजा। चाट प्लान के अनुसार सब लोग अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे।
 
बाबा पशुपतिनाथ का दर्शन12 जून को बाबा पशुपतिनाथ का दर्शन करना था। अहले सुबह नींद खुली। नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान कर मन्दिर पहुँच गए। फूल और प्रसाद के साथ रुद्राक्ष का माला लेकर पूजा के लिये मुख्य मन्दिर में प्रवेश किये। साथ में पंडा भी थे। वे बता रहे थे, बाबा पशुपतिनाथ के लिङ्ग में चार मूर्तियां हैं। इन चारों दरवाजों से बाबा का दर्शन किया जाता है। हम सब बाबा के चारो रूप का दर्शन किये। मंन्दिर के पश्चिमि भाग में बागमती नदी है, जो कि मन्दिर परिसर से होकर गुजरती है।
 
हमनें मन्दिर के इतिहास की जानकारी लेना चाह। पण्डा जी ने बताया कि भगवान शंकर कैलाश पर्वत से घूमते हुए इस जगह पर जब पहुंचे तो उन्हें यह क्षेत्र बहुत रमणीक लगा। वे हिरण का रूप धारण कर यहां विचरण करने लगे। कुछ दिनों बाद देवताओँ को पता चला कि भगवान शंकर कैलाश छोड़कर अन्यत्र चले गए हैं। तब देवतओं की चिंता बढ़ गई। वे उन्हें ढूढते ढूढ़ते यहां पहुंच गए। भगवान शंकर देवताओ को देख कर भागने के लिये ऐसा छलांग लगाये कि बागमती नदी के तट से टकराकर उनका सिंग टूट कर चार टुकड़ा हो गया। भगवान अंतरर्ध्यान हो गये। उनका टूटा हुआ सींग शिवलिंग स्थापित हो गया। सींग के चारों टुकड़ा शिवलिग में चार मुख बन गया। बाद में नेपाल के तत्कालीन राजा ने वहां मन्दिर बनवाया। पशुपतिनाथ को राष्ट्रीय देवता का स्थान दिया।
 
पण्डा जी को दक्षिणा देने के बाद हमलोगों ने सामूहिक तश्वीरें खिंचवाई। पुन: होटल वापस आ गये। दोपहर का भोजन कर काठमांडू के अन्य दर्शनीय स्थलों को देखने केलिये हम सब चल पड़े। एक – एक कर घूमने लगे बुद्ध नाथ ,गूँजेश्वरी टेम्पल ,बूढा नीलकण्ठ, स्वयंभू नाथ, गोल्डन बुद्धा, हनुमान ढोका, राजा का महल आदि। कुछ लोग कैसिनो के शौक़ीन थे वे कैसिनो देखने चले गये। हमलोग रात्रिभोज के पश्चात अपने-अपने कमरे में रात्रि विश्राम के लिये चले गए।
 
बिन मनोकामना अधूरी यात्रा: 13 जून को हमें मनोकामना के लिये कूच करना था। तय हुआ कि मनोकामना माता के दर्शन के बाद वहीं दोपहर का भोजन होगा। सुबह हम सब बस में सवार हुये। गाड़ी मनोकामना की ओर रुख किये धीरे-धीरे आगे की ओर बढ़ने लगी। सड़क टूटी होने के कारण बस रफ्तार नही पकड़ पा रही थी। काठमांडू शहर के आखिरी छोर पर हम पहुँचे होंगे कि बस के नीचे से कट की आवाज सुनाई दी। ड्राइवर ने गाड़ी रोक दिया। देखा तो आगे की पत्ती टूट गई थी। हम सब एक एक कर गाड़ी से बाहर उतरे। सहायक ड्राइवर बस बनाने की प्रक्रिया में जुट गया।
 
हम सब गाड़ी के बाहर खड़े थे। एकाएक मौसम का मिजाज बदलने लगा। धूप धुंधली होने लगी। देखते-देखते सामने से काले धुएं के समान बादल सिर के पास से गुजरने लगा। ठंढी बर्फीली हवा चलने लगी। शरीर रोमांचित हो उठा। हम सब अपने सर से गुजरते बदलो को अपलक निहारते रहे। प्रकृति के इस अनुपम छटा को देख सब मुग्ध हो रहे थे। घाटी में सीढ़ीनुमा खेतों में लहलहते मक्का के पौधों को देखने केलिये हम सब नीचे उतर गए थे। नेपाल का पहाड़ हरा भरा है। ऊपर में समतल जमीन है जिस में मक्के और सब्जियों की अच्छी खेती होती है। वहां गंiजे की खेती भी होती है।
 
कटोरानुमा पहाड़ पर काठमांडू : तब तक गाड़ी बनकर चलने को तैयार खड़ी थी। हम सब बस में सवार हुए। टेढ़ी मेढ़ी रास्ते पर गाड़ी नीचे की ओर सरकने लगी। ऊँचे कटोरानुमा पहाड़ पर बसा काठमांडू शहर अब हमारी आँखों से ओझल होता जा रहा था। हम फिर वही ऊँचे पर्वत, घने जंगल, खाई औऱ घाटियों के बीच से गुजर रहे थे। ढलान होने के कारण गड़ी रफ्तार पकड़ चुकी थी। गाड़ी आगे और रास्ता पीछे भागी जा रही थी। देखते-देखते 110 किलोमीटर की दूरी तय कर हमारी बस मनोकामना पहुंच गई।
 
अब मनोकामना माता के दर्शन के लिये ढाई सौ सीढियां उतर कर नीचे जाना था। हम सब धीरे धीरे सीढियां उतरने लगे। हम सब वहाँ पहुँच गये, जहाँ से प्रति व्यक्ति 500 (भा रु) का टिकट खरीद कर केबुल कर से मन्दिर पहुँच ना था।
 
केबुल कार में बैठाकर दर्शन: टिकट काउंटर पर लम्बी लाइन लगी थी। हमारे अनुभवी टूर ऑपरेटर ने सीधे कार्यालय से सम्पर्क कर 5 मिनटों में टिकट उपलब्ध कराकर सब को साथ लेकर केबुल कार में बैठाकर दर्शन करने चल पडा। अब हम तीन ऊँचे गगनचुंबी पर्वतो को पार करते हुए तीन किलोमीटर की दूरी केबुल कार से तय करते हुए माता के मंदिर पहुंचे।फूल प्रसाद माला लेकर कतारबद्ध हो माता के चरणों मे पहुचने और दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।कहा जाता है कि बाबा पशुपतिनाथ के दर्शन के बाद माता मनोकामना के दर्शन करने से मनुष्य की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
 
पुनः केबुल कार से वापस पहाड़ के नीचे आय। दिन के तीन बज चुका था। भूख अपनी चरम को पार कर रही थी। ढाई सौ सीढ़ियां चढ़ना कठिन हो रहा था। यहाँ का मौसम अपना बिहार जैसा था। चिलचिलाती धूप में सीढियां चढ़ते-चढ़ते पूरा कपड़ा पसीना से तर हो चुका था।
 
अब हम ऊपर राजमार्ग पर गाड़ी के पास पहुंच चुके थे। हमारा किचेन टीम हमारा इंतजार कर रहा था। सामने के होटल के किचेन एरिया में भोजन तैयार था। हॉल में पहुचते ही सुगन्धित बासमती चावल राजवाँ पापड़ अचार सलाद परोसा गया। सब छककर खाये।
 
खुले में पेशाब नहीं करें: पुनः बस में सवार हुए। अभी 80 किलोमीटर की दूरी तय कर पोखरा पहुँचना बाकी था। उसी घाटी के रास्ते हम मुगलिंग पहुँचे। यहाँ से पोखरा जाने के लिये रास्ता बदलना पड़ता है। हमने नेपाल में एक खासियत देखी। हमलोग बिहार जैसा जहां भी गाड़ी रुकती, खुले में पेशाब करने के लिये तैयार हो जाते। पर, नेपाल के जागरूक नागरिक ऐसा होने से रोक देते। यदि कोई उनकी बातों को नहीं मानता तो वे पुलिस को फोन कर बुला दण्डित कराते हैं। वहां के प्रत्येक होटल, छोटी -छोटी दुकानों में टॉयलेट की व्यवस्था है। जगह-जगह पर कूड़ेदान रखे हुए हैं। गन्दगी न फैले इस पर वहां के नागरिक जागरूक है।
 
मुगलिंग से हमारी गाड़ी अब पोखरा जानेवाली सड़क पर सरपट भरने लगी थी। फिर हमारी आंखों के सामने से वही सब दृश्य गुजरने लगे थे। टेढ़ी मेढ़ी सड़क, ऊँचे पहाड़ ,सुरम्य जंगल, खाई। अब सूर्य पहाड़ो की ओट में छिप ने लगा था। धीरे धीरे चारो ओर अंधेरा पसर चुका था। गाड़ी तेज रफ्तार में भागी जा रही थी। हमलोग पोखरा के रमणीक स्थलों को देखने के लिये उत्सुक थे। इसी बीच पोखरा शहर के बिजली का चकाचौंध दिखाई पड़ने लगा। रात्रि 8 बजे गाड़ी ब्लू लेक होटल के समीप पहुंची। ड्राइवर ने ब्रेक के पैडल पर पैर रखा। कीच कीच की आवाज के साथ गाड़ी रुक गई। सब से पहले किचेन टीम उतरा और अपने काम में व्यस्त हो गया। हम सब अपने पूर्व निर्धारित कमरे में पहुँच कर आराम करने लगे।
 
अन्नपूर्णा पर्वत की चोटी और पोखरा: रात्रिभोज के बाद कल सूबह पोखरा के साइटसिन का कार्यक्रम तय हुआ। सुबह आँखे खुली तो समने की खिड़की से सफेद अन्नपूर्णा पर्वत की चोटी दिखाई पड़ी। अभी तक आपनी आँखों से कभी साक्षात ऐसा दृश्य नही देखा था। प्रकृति का यह अनुपम दृश्य मन को मुग्ध किये जा रहा था। सफेद बर्फ़ का पहाड़ सामने खड़ा था। हमें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। प्रकृति के भिन्न भिन्न रूपो का दर्शन करने का मौका नेपाल यात्रा ने हमें दी। इन दृश्यों को देख कर धन्य हो गया।
 
सुबह के नास्ता के बाद हम सब पोखरा के विंध्यवासिनी मन्दिर गये। माता का दर्शन कर ने के पश्चात बस में सवार हो गुप्तेश्वरनाथ तथा डेविस फाल के लिये रवाना हो गये। पोखरा शहर का भ्रमण करते हुये कुछ ही देर बाद हमारी गड़ी डेविस फॉल के पास खड़ी थी। हम सब डेविस फॉल के प्रवेश द्वार के काउंटर से 30 भा रु का टिकट खरीद कर अंदर आये और घूमने लगे। डेविस फॉल की विशेषता यह है कि पानी गिरता दिखाई देता है, जा कहाँ रहा है पता नहीं चलता। पास ही एक पतला सुरंग है । जिस से झरना का पानी गिरने के कारण तेज हवा के झोंके के साथ पानी का फुहारा ऊँचाई तक निकलता है। जो अपने आप मे एक आश्चर्य जैसा लगता है।
 
पास में ही सड़क के उस पार गुप्तेश्वर नाथ का गुफा है। यहाँ प्रति व्यक्ति 65 भा रु का टिकट लेना पड़ता है। प्रवेश टिकट लेकर हम सब गुफा में गुप्तेश्वरनाथ का दर्शन कर आगे गुफा में चलते गये। गुप्तेश्वर गुफा 5000 वर्ष पुरानी है। दक्षिण एशिया के 9992 फिट लम्बी आश्चर्य चकित गुफा है। इस की आखरी छोर पर वही झरना मिलता है, जो डेविस फॉल से नीचे जाता है। यह देखने मे एक अजूबा लगता है।
 
हम सब गुप्तेश्वर गुफा से वापस हो कर गाड़ी में सवार हुए। कुछ ही देर में हमारी गाड़ी हमे ले कर ब्लू लेक होटल पहुँच गई। दोपहर का भोजन कर अपने कमरे में आराम करने चले गये।
 
पहाडों से घिरा फेवा लेक: शाम 4 बजे पद यात्रा करते फेवा लेक पहुँचे। यह पोखरा का सबसे रंगीन जगह है। तीन तरफ से पहाड़ो से घिरा फेवा लेक में दक्षणी छोर पर वाराही टेम्पल स्थित है। यह टेम्पल फेवा लेक में है। यह चारों तरफ से जल से घिरा हुआ है। दर्शन के लिय जाते हैं। हम में से कुछ लोग वोट पर सवार हो मन्दिर दर्शन के लिये रवाना हुए, तो कुछ लोग वोट पर सवार हो झील में सैर करने का आनन्द लेने लगे।
 
शाम 6 बजते ही यहाँ की शाम रंगीन हो जाती है। वारवि-कियू, लाइव मियूजिक , बियर वार में डांस, जाम से जाम टकराने लगते हैं। सैलानियो के हाथों में जाम म्यूजिक के धुन पर झूमने लगता है। बिजली की रंगीन रौशनी पर झील के हल्फते जल झूमने लगते हैं। लगता है सचमुच यह कहावत चरितार्थ होने लगता है कि :- सूर्य अस्त, नेपाल मस्त।
 
वर्षा होने कर कारण हमलोग रात आठ बजे अपने विश्राम स्थल ब्लू लेक होटल लौट आये। 15 जून के सुबह फिर वही अन्नपूर्णा की बर्फ़ीली चोटी का नजारा और पाराग्लैडिग करते आकाश में उड़ते लोगों को देख मन मुग्ध हो उठा।
 
आज नेपाल छोड़कर हमें पटना लौटना था। पर नेपाल की प्राकृतिक सौंदर्य मन को मोहित कर लिया था। आने की विवशता हमें बाध्य कर रही थी। आखिरकार मन को किसी तरह मना कर सुबह का नास्ता कर सवार होते ही बस पटना की ओर सरपट दौड़ने लगी। फिर वही पहाड़, वही सुरम्य घाटी, खाई, नदी को देखते, टेढ़ी-मेढी सर्पिली सड़क पर तेज गति में भागती गाड़ी हमें पटना की ओर चली जा रही है। रास्ते मे कई जगह रुकते, खाते-पीते अन्ततः 16 जून को सबेरे 4 बजे अपनी आँखों मे नेपाल के प्राकृतिक सौंदर्य को छुपाये हम पटना पहुँच जाते हैं।
(लेखक भारतीय जीवन बीमा से जुडे हैं)
Comments on facebook group:
Ranjan Kumar: बहुत ही सुंदर तरीक़े से यात्रा का जीवंत वर्णन जैसे लग रहा है मैं ही घूम कर आ रहा हूँ । धन्यवाद सहित सादर चरण स्पर्श ।
 
Srikant Ray बहुत – बहुत आशीर्वाद मेरे प्यारे रंजन जी।
 
Ashok Bhatt आपका यात्रा तो मजेदार रहा ही लेकिन लेखनी उससे भी बेजोड़
 
Rajesh Kumar Bhatta आपका उत्कृष्ट यात्रा-वृतान्त बरबस हीं लोगों को नेपाल का सचित्र दर्शन करा दिया । वैसे पोखरा पयर्टकों के आकर्षण का केन्द्र है। वहाँ पैराग्लाइडिंग , एयरहेली ,कियकिंग,जीपफायर , बोटिंग और ट्रेकिंग को लेकर विदेशी सैलानी काफी आकर्षित होते हैं ।
 
Pawan Ray बहुत ही सुंदर यात्रा वृतांत, पढ़ने के टाइम मे लगा की हम भी नेपाल की वादियों में आपके साथ घूम रहे हैं । साथ ही हमें एक सुंदर सीख मिली, घूमने के लिए पहले से सहयोगियो की अपने दोस्तों की व्यवस्था करने की जरूरत नहीं है,
 
Mahendra Pratap Bhatt बहुत सुंदर। नेपाल घूमने का मन हो गया।
 
Deorath Kumar: वाह, मज़ा आ गया। आपने जितना सुन्दर लिखा है, इसकी कितनी भी तारीफ करूँ कम होगा। Srikant Ray जी Kundan Bhatt जी, आप निःसंकोच लिखिए की ये टूर आपकी कम्पनी ने आयोजित किया था और अगली टूर की तिथि भी बताइये ताकि इच्छुक लोग आपके साथ जा सकें
 
Amita Sharma: आज तक इतने अच्छे से किसी ने वर्णन नही किया।आपने साक्षात दर्शन करा दिया,शुक्रिया।जय हो पशुपतिनाथ बाबा की।जय हो मनोकामना माता की।
 
Vikash Kumar Bhatt जीवन्त वर्णन ! मानो मै अभी भी नेपाल मे हु | मजा आ गया |
 
Anita Sharma सजीव चित्रण आपने लग रहा है कि घुम कर ही आ गए.
 
Sangita Roy वाह इतना अद्भुत एवं सजीव वर्णन आज तक मैने नहीं पढ़ा है।सर आपकी लेखन शैली अद्भुत है।प्राकृतिक दृश्यों का इतना सुन्दर चित्रण पढ़ कर आंखों के आगे सभी दृश्य दिखाई देने लगे।इस संस्मरण के लेखन कला की जितनी भी तारीफ की जाय कम है।
 
Tuhin Kumar: नेपाल यात्रा का आपका वर्णन इतना रोमांचक लगा कि एक ही बार में विस्तृत वृतांत पढ़ गया।ऐसा लगा मानो आपके संग पर्यटन पर हूँ।सर्वाधिक निकटतम फासले के बावजूद यात्रा के पूर्व मुझे सूचना नही दी।खैर प्रचंड तापमान के दौरान नेपाल यात्रा संसमरण से शीतलता का एह्सास कराने के लिए आपको अत्यंत धन्यवाद ।पशुपतिनाथ मनोकामना मंदिर विंध्यवासिनी आदि के दर्शन सेब जहां धार्मिक संतोष मिलता है वही हिमालय की घाटियों तराइयों वनों चोटियों एवं हरीतिमा से मन प्रफुल्लित हो जाता है।प्रतीक्षा आगामी यात्रा की।
 
Tarkeshwar Sharma सचमुच अदभुत संस्मरण,बैठे बैठे नेपाल की तीर्थयात्रा हो गयी।
 
Dharmendra Ray आप की नेपाल यात्रा का वर्णन सुनकर के नेपाल घूमने का बहुत मन कर रहा है और अगर आप नेपाल टूर ऑपरेटर में है तो कृपया अपना नंबर देने का कृपा प्रदान करें ताकि समय पर काम आ सके
 
Brajesh Roy विभिन्न दृश्यों एवम रमणीक प्राकृतिक छटा का वर्णन भाव विह्वल करने के लिये बाध्य हो का वर्णन किया गया है, टूर एंड ट्रेवलर का पूरा पता और मोबाईल न0 देने की असीम कृपा की जाय तथा क्या खर्च पड़ा ,पूर्ण विवरणी देने की कृपा करें
 
Tripurari Roy Brahmbhatta इतने सुंदर वर्णन के बाद अब नेपाल की यात्रा फिजूल है । अब कहीं और चला जाय ।
 
Rakesh Sharma बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत।आपके नजरों से लगता है कि हम पुरी नेपाल की यात्रा कर रहे हैं।
Roy Tapan Bharati इस यात्रा संस्मरण पढ़ने के बाद लगा मैने भी नेपाल घूम लिया
 
 
Basuki Roy कृपया टुर आपरेटर का पता बताने का कष्ट करें। बहुत ही सुंदर चित्रण।
 
Rajeev Kumar नेपाल यात्रा का सुंदर, सजीव एवं अनिर्वच चित्रण आपके लेखन कला की विशिष्टता है। आप लम्बे समय तक अध्यापन एवं पत्रकारिता से जुड़े रहे हैं।किंतु परिस्थितिवश आप इस क्षेत्र से कट गए हैं।जो आपकी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं है। आप इस क्षेत्र मे भी थोड़ा समय देते तो समाज को कुछ फायदा पहुँच सकता था और खुद को सुकून। खैर इन संस्मरणों को संकलित करने की आवश्यकता है ताकि भविष्य मे इसे पुस्तकाकार रूप दिया जा सके।
 
Priyanka Roy अद्भुत रोचक यात्रा वृतांत…👌

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here