…और मूत्र चिकित्सा से कैंसर ठीक हो गया

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दरअसल मूत्र चिकित्सा के बारे में देश में बड़ी झिझक है। मूत्र चिकित्सा अपनाने वाले मोरारजी देसाई का कुछ लोग इसी आधार मजाक भी उड़ाते थे। जब देसाई प्रधानमंत्री थे तो उनके कुछ राजनीतिक विरोधियों व मीडिया के एक हिस्से के पास उनकी आलोचना का यह सबसे बड़ा हथियार था। पर वे उसकी परवाह नहीं करते थे। 
सुरेंद्र किशोर, सीनियर पत्रकार / पटना
सुरेंद्र किशोर,

कल (11 May) एक दुःखद खबर मुम्बई से आई। महाराष्ट्र के योग्य व बहादुर आईपीएस अफसर हिमांशु राय ने आत्म हत्या कर ली। वे कैंसर की असह्य पीड़ा को सह नहीं सके। 

इस घटना पर मुझे आरा के प्रो.केशव प्रसाद सिंह की कहानी याद आ गयी। उनकी कहानी 11 अप्रैल, 1994 के टाइम्स आॅफ इंडिया @पटना@में छपी थी। बाद में मैं एक मरीज के साथ आरा जाकर उनसे मिला भी था। लाभ हुआ था। केशव बाबू आरा जैन काॅलेज में राजनीतिक शास्त्र विभाग के अध्यक्ष थे। वे मुंह के कैंसर से ग्रस्त हो गए।
मुम्बई के टाटा स्मारक अस्पताल में इलाज कराया। ठीक नहीं हुए। मर्ज थर्ड स्टेज में था। प्रो.सिंह ने हार कर मूत्र चिकित्सा शुरू की। 1978 में ठीक हो गए।
चेक अप कराने मुम्बई गए। उनकी केस फाइल पर टाटा अस्पताल के डा.जस्सावाला ने लिखा कि ‘यह चमत्कार से कम नहीं है।’ बाद में प्रो. सिंह खुद प्राकृतिक चिकित्सक यानी मूत्र चिकित्सक बन गए। उन्होंने कई लोगों के कैंसर ठीक किए। वे कहते थे कि यदि कैंसर लीवर में न हो तो किसी अन्य अंग के कैंसर को मैं ठीक कर सकता हूं।
प्रो.सिंह पूरी आयु जिए।
दरअसल मूत्र चिकित्सा के बारे में अपने देश में बड़ी झिझक है। मूत्र चिकित्सा अपनाने वाले मोरार देसाई का कुछ लोग इसी आधार मजाक भी उड़ाते थे। जब देसाई प्रधान मंत्री थे तो उनके कुछ राजनीतिक विरोधियों व मीडिया के एक हिस्से के पास उनकी आलोचना का यह सबसे बड़ा हथियार होता था। पर वे उसकी परवाह नहीं करते थे। मोरारजी भाई को लम्बी उम्र मिली. जापान के चिकित्सक हाशीबारा ने देसाई को 1991 में लिखा था कि जापान में 20 लाख लोग इस मूत्र चिकित्सा को अपना रहे हैं। उन्हीं दिनों ताइवान की ऐसी ही खबर अखबार में छपी थी।

करोड़ों भारतीयों के लिए “संपूर्ण और सबसे सस्ता चिकित्सा उपाय: मोरारजी देसाई

दिन का पहला मूत्र ही मूत्रपान के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसमें भी मूत्र की शुरू वाली और आखिर वाली धारा को छोड़ दिया जाता है

Written by Roy Tapan Bharati

देश के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने 1978 में एक साक्षात्कार में मूत्रपान को करोड़ों भारतीयों के लिए “संपूर्ण और सबसे सस्ता चिकित्सा उपाय” बताया था क्योंकि एक आम भारतीय के पास अपना इलाज कराने के लिए पैसे नहीं होते हैं। ब्रिटिश अभिनेत्री साराह माइल्स ने करीब 30 वर्षों तक अपने मूत्र का सेवन किया। बेसबाल खिलाड़ी मोइसेस अलोयू अपने हाथ पर मूत्र का इस्तेमाल करते रहे हैं। गायिका मैडोना ने भी एक साक्षात्कार में स्वीकार किया है कि उन्होंने अपने पैर में इन्फेक्शन की समस्या दूर करने को अपने मूत्र का इस्तेमाल किया है। मार्शल आर्ट फाइटर लाइओटो मचीडा ने तीन साल तक कफ की समस्या दूर न होने पर अपने मूत्र का पान शुरू किया। बॉक्सर जुआन मार्केज भी मूत्रपान कर चुके हैं।
 
इन उदाहरणों से पता चलता है कि हमारे मूत्र में कुछ विलक्षण बात तो है। इसके एंटीसेप्टिक और चिकित्सकीय प्रभाव को विज्ञान भी मानता है, लेकिन चूंकि मूत्र शरीर का अवशिष्ट पदार्थ है, इसलिए लोग इससे दूर ही रहते हैं। इसके अलावा मूत्रपान की विधि आसान भी नहीं है। इसके पान के लिए किसी विशेषज्ञ की मदद जरूरी होती है। इन्हीं सब कारणों से एक बहुत ही सस्ती चिकित्सा लोगों के बीच लोकप्रिय नहीं हो सकी।
 
ऊपर दिए गए उदाहरणों को छोड़ दें तो हमने अपने आसपास रोगों के निदान के लिए किसी को मूत्रपान करते नहीं देखा। आम लोगों की जानकारी में भी यह बात तभी आई थी जब पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के बारे मेें यह सुनने को मिला कि वे मूत्रपान करते थे। लेकिन योगाचार्यों के अनुसार मूत्रपान बहुत ही प्राचीन चिकित्सा विधि है और कापालिक कहे जाने वाले योगी इसका इस्तेमाल करते हैं। योगाचार्यों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति अपने रोज के जीवन में अनुशासन और उचित खान-पान का ध्यान रखे तो मूत्रपान बहुत ही विलक्षण औषधि की तरह काम करता है।
 
क्या है इस्तेमाल का तरीका
 
योगाचार्यों के अ्रनुसार दिन का पहला मूत्र ही मूत्रपान के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसमें भी मूत्र की शुरू वाली और आखिर वाली धारा को छोड़ दिया जाता है। मूत्र की धारा का मध्य भाग जमा किया जाता है। पूरा मूत्र तासीर में गर्म होता है, लेकिन इसका बीच का भाग ठंडा होता है और शरीर व दिमाग पर बहुत सकारात्मक असर डालता है। योगियों की मानें तो “शिवंबू” कहा जाने वाला मूत्र का यह बीच का हिस्सा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। थकान को पास नहीं फटकने देता और मोटापा, हाइपरटेशन, थायरॉयड, अस्थमा, डायबिटीज, त्वचा की एलर्जी और अन्य अनेक रोगों में फायदा पहुंचाता है।
शिवंबू की कुछ बूंदें नाक के दोनों नथुनों में भी डालने की चिकित्सा विधि की जानकारी योगाचार्य देते हैं। अगर सुबह-सुबह नाक में ये बूंदें डालकर गहरा सांस लिया जाए तो शिवंबू नाड़ियों को खोलने में मदद करता है। यह शरीर में अंदर तक जाकर गले के रोगों, छाती में जकड़न, साइनस और मस्तिष्क की कार्यक्षमता को दुरुस्त करता है। रोम के इतिहास में भी मूत्र से दांत चमकाने का जिक्र मिलता है। कुछ अन्य धर्मों में भी इसका वर्णन है।
 
विज्ञान क्या कहता है
 
जहां तक विज्ञान की बात है तो मूत्र में पानी और यूरिया के अलावा थोड़ी-थोड़ी मात्रा में हजारों यौगिक, हार्मोंस, एंजाइम्स और मैटाबोलाइट होते हैं। तकनीकी रूप से मूत्र खराब पदार्थों वाला तरल नहीं है, बल्कि इसमें अनेक हार्मोंस, मिनरल और एंजाइम होते हैं। दरअसल ऊर्जा बचाने और खून के संतुलन को बनाए रखने के लिए हमारी किडनी उपयोग में न आने वाले एंजाइम, मिनरल और हार्मोंस को शरीर से बाहर कर देती है। यानी बाहर आए ये पदार्थ खराब नहीं होते, बल्कि शरीर ही उनका उपयोग नहीं कर पाया। विज्ञान में मूत्र में कैंसर विरोधी तत्व भी पाए जाने की बात कही गई है।
 
कुल मिलाकर मूत्रपान एक कारगर मगर कठिन चिकित्सा है। इसके लिए न सिर्फ विशेषज्ञ के साथ की जरूरत है, बल्कि व्यक्ति को खुद भी काफी अनुशासन में रहना होता है। यदि आप रोगों से परेशान हैं और ऐसी चिकित्सा करना चाहते हैं तो किसी योगाचार्य या अन्य विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। खुद से कुछ भी न करें।
 
हां, मूत्र का बाहरी इस्तेमाल बेखटके किया जा सकता है। हाथ-पैरों की त्वचा पर किसी भी प्रकार के दाग, इन्फेक्शन, चोट, खाज, खुजली आदि में मूत्र बहुत लाभकारी है। कई विशेषज्ञ सांप के काटने की स्थिति में भी डॉक्टर की मदद पहुंचने से पहले घाव पर मूत्र के इस्तेमाल की सलाह देते हैं।

गाय के मूत्र का महत्व भी बढ़ा

मनुष्य के मूत्र के सापेक्ष आजकल गाय के मूत्र का महत्व बहुत बढ़ गया है। गाय के मूत्र से देश में बनी एक दवा को तो अमेरिकी पेटेंट भी हासिल हो चुका है। कैंसर की इस दवा में एंटी-जीनोटॉक्सिटी गुणों के कारण इसे यह पेटेंट मिला है। कामधेनु अर्क नाम की इस दवा को नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियर रिसर्च इंस्टिट्यूट (नीरी) के सहयोग से तैयार किया गया है। इस दवा में री-डिस्टिल्ड काउ यूरिन डिस्टिलेट (आरसीयूडी) है जिसका उपयोग जैविक तौर पर नुकसानग्रस्त डीएनए को दुरस्त करने में किया जा सकता है। इस नुकसानग्रस्त डीएनए से कैंसर समेत कई बीमारियां हो जाती हैं।
 
गाय के मूत्र से कई अन्य प्रकार की दवाएं भी बनाई जा रही हैं। गाय के मूत्र से बनी दवाएं कैंसर के अलावा तपेदिक (टीबी), पेट के रोगों समेत अन्य कई रोगों से भी लड़ने की क्षमता रखती हैं।

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