मायावती का इस्तीफा, एक तीर से कई निशाने

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मायावती ने इस्तीफा देकर दलित वोट बैंक में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। संभव हो कि मायावती की  इस्तीफा वाली रणनीति प्री प्लांड हो लेकिन उसकी राजनीति ना सिर्फ बसपा में उनकी पैठ को मजबूत करती है बल्कि दलितों के बीच अपनी विश्वसनीयता को भी कायम रखने में सफल दिखती है। 

अखिलेश अखिल/ नई दिल्ली
राजनीति कब किस पर भारी पड़ जाय और कब डूबती नैया किनारा लग जाय इसे भला कौन जाने ! मायावती ने जिस तरह से सहारनपुर मसले पर राज्य सभा सदस्य से इस्तीफा दिया उससे साफ़ जाहिर है कि दलित वोट बैंक से कटती जा रही मायावती ने इस्तीफा देकर दलित वोटबैंक में अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। संभव हो कि मायावती की  इस्तीफा वाली रणनीति  प्री प्लांड हो लेकिन उसकी राजनीति ना सिर्फ बसपा में उनकी पैठ को मजबूत करती है वल्कि दलितों के बीच अपनी विश्वसनीयता को भी कायम रखने में सफल दिखती है। मायावती की यह राजनीति भविष्य की राजनीति है और उनके इस एक तीर से कई घायल होते दीखते हैं।
मायावती के इस्तीफे को हर दल अपने अपने नजरिये से देख रहा है।  मायावती ने तीन पेज का इस्तीफा दिया  हैं और उसमें सहारनपुर से लेकर कई सियासी मुद्दे को उठाया है। जबकि नियम ये है कि कोई सदस्य संसद से इस्तीफा देते वक्त बस एक लाइन का इस्तीफा देता है और कोई कारण नहीं बताता। इस आधार पर सभापति ये इस्तीफा स्वीकार करेंगे इसकी कम ही संभावना है। लेकिन जिस तरह से  मायावती का समर्थन करते हुए कांग्रेसी सांसदों ने वॉकआउट किया।इससे साफ़ जाहिर है कि विपक्षी एकता गोलबंद हो रहा है।
अप्रैल 2018 में मायावती की राज्यसभा सदस्यता का टर्म पूरा हो रहा था। लोकसभा में बीएसपी का कोई सदस्य नहीं है और यूपी विधानसभा में सिर्फ 19 सदस्यों के वोट से मायावती के लिए राज्यसभा फिर से पहुंच पाना संभव नहीं था।  लेकिन अब इस्तीफे के बाद कांग्रेस समर्थन में खड़ी है और आरजेडी चीफ लालू यादव ने मायावती को आरजेडी कोटे से राज्यसभा भेजने की पेशकश की है।  इस तरह विपक्षी एकजुटता के बीच मायावती की राज्यसभा में वापसी के कई विकल्प खड़े हो गए हैं। सहारनपुर में दलितों के खिलाफ अत्याचार का मुद्दा उठाते हुए मायावती ने इस्तीफा दे दिया।  इस तरह अपने कोर वोट बैंक दलितों के बीच मायावती फिर से चर्चा में आ गईं। अब मायावती फिर से यूपी में अपनी खोई हुई सियासी जमीन तैयार करने की तैयारी में हैं और ये सियासी मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है।
सहारनपुर मुद्दे को राज्यसभा में उठाकर मायावती दलितों के मुद्दे को फिर से एजेंडे में लाने में सफल रही हैं।  पहले वेमुला मामले, फिर सहारनपुर को लेकर घिरी बीजेपी के लिए इससे चुनौती बढ़ सकती है। 2019 के आम चुनावों के पहले कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल दलित वोटबैंक के मद्देनजर मायावती को आगे रखकर मोदी के लिए चुनौती बढ़ा सकते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में नीतीश के अलग खेमे के साथ खड़े होने से 2019 से पहले राष्ट्रीय महागठबंधन बनाने की विपक्ष की कोशिशों को झटका लगा था लेकिन मायावती ने फिर से विपक्षी एकता की संभावनाओं को जिंदा कर दिया है। बीजेपी के खिलाफ सभी विपक्षी दल एकजुट दिख रहे हैं और अब महागठबंधन की कवायद फिर आगे बढ़ सकती है। राजनीति की माहिर मायावती ने केंद्र सरकार को भी बता दिया है कि लालू यादव की तरह अगर उनपर कोई कार्रवाई की गयी तो इसे बदले की राजनीति ही मानी जायेगी।
अब देखना होगा कि मायावती की राजनीति विपक्षी एकता को कितना धार देती है और विपक्षी एकता मोदी सरकार को कैसे घेर पाती है। आगे की राजनीति चाहे जो भी हो लेकिन मायावती अभी फिलहाल राजनितिक फलक जीवित हो चुकी है।

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