क्या भारत और चीन में युद्ध होना तय है?

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क्या चीन भारत की फौजी ताकत को कमजोर समझने की भूल कर रहा है? या भारत चीन की सैन्य शक्तियों का आकलन करने में विफल है। चीन डोकलाम में भूटान की सरहद से दो किलोमीटर भीतर सड़क बनाने की कोशिश कर रहा था जिसे भारतीय फौज ने रोक दिया। यह बात एक महीना पहले की है। तब से दोनों देशों की सेना वहां आमने-सामने डटी हुई है।

राय तपन भारती, संपादक, khabar-india.com News Website

क्या भारत चीन से युद्ध के लिए तैयार है? चीन से निरंतर मिल रही धमकियों को लेकर भारत को फौजी और कूटनीतिक तैयारियों में कोई कमी नहीं रखनी चाहिए। भले ही सरकार अगले राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति चुनाव के अलावा ऐतिहासिक टैक्स सुधार-जीएसटी को लागू करने में व्यस्त है। हमे यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि चीन हमे कई बार धोखा हो चुका है। भारत और चीन में सबसे बड़ी लड़ाई नवंबर 1962 में हुई थी। नेहरू को यकीन ही नहीं था कि भारत-चीन भाई-भाई बोलने वाला बीजिग उसकी सरहदों पर हमला कर जमीन हथिया लेगा। भारत को अब तक मलाल है कि उसकी लापरवाही से उसके पड़ोसी दोस्त तिब्बत पर चीन ने हमेशा के लिए कब्जा कर लिया। इस बार चीन की खतरनाक निगांहें सिक्किम और भारत के पड़ोसी दोस्त भूटान पर है।

सीमा विवाद को लेकर भारत और चीन आमने सामने हैं। वैसे हमें यहां यह भी नही भूलना चाहिए कि अगर हम 1962 की तुलना में मजबूत हुए हैं और हमारे देश ने काफी तरक्की की है तो चीन की तरक्की भी कम नहीं है। आज का चीन भी 1962 वाला चीन नहीं है। युद्ध के पहले चीन अपने प्रचार तंत्र का जबरदस्त इस्तेमाल कर रहा है ताकि बिना युद्ध ही भारत डोकलाम इलाके से हट जाए। ऐसी खबर है कि चीन ने डोकलाम में भारतीय सेना के सामने अपनी फौज तैनात करने के अलावा तिब्बत में भी कई जगह अपनी सेना को तैयार कर रखा है। मैं मानता हूं कि चीन के मुकाबले भारत की फौजी तैयारी कम नहीं होगी। पर सवाल है कि सिक्किम-चीन सीमा पर लड़ाई छिड़ी तो कितने तक चलेगी? भारत ने फौज के लिए कितने गोला-बारुद और हथियार जमा कर रखे हैं?

भारत ने नेहरू के शासनकाल में कभी सोचा भी नहीं था कि चीन उस पर हमला करेगा लेकिन पड़ोसी देश ने ऐसा किया। 20 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत पर हमला कर दिया जिसे भारत-चीन के 1962 के युद्ध के रूप में जाना जाता है। भारतीय सेना इस हमले के लिए तैयार नहीं थी। नतीजा ये हुआ कि चीन के 80 हजार जवानों का मुकाबला करने के लिए भारत की ओर से मैदान में थे केवल 10-20 हजार सैनिक। ये युद्ध पूरा एक महीना चला जब तक कि 21 नवंबर 1962 को चीन ने युद्ध विराम की घोषणा नहीं कर दी। तिब्बत में अपने शासन के लिए भारत को खतरा मानने की चीनी धारणा 1962 के युद्ध का सबसे बड़ा कारण रहा। 1962 की गर्मियों में भारत और चीन की सेना के बीच विवाद की कई घटनाएं हुईं। 10 जुलाई 1962 को 350 चीनी सैनिकों ने कुसूल में भारतीय पोस्ट को घेर लिया था और लाउडस्पीकर से गोरखा सैनिकों को ये मैसेज दिया कि उन्हें भारत की ओर से नहीं लड़ना चाहिए।

1962 में चीन-भारत में युद्ध ऐसे लड़ा गया था

ताजा डोकलाम विवाद के बाद से ग्लोबल टाइम्स समेत चीन के सरकारी अखबार और प्रवक्ता डोकलाम विवाद पर भारत के खिलाफ जहर उगल रहें हैं। आज मैंने चाइना रेडियो इन्टरनेशनल (CRI) की वेबसाइट को खंगाला तो पता लगा कि डोकलाम जमीन पर अपने दावे के लिए चीनी दूतावास के राजनयिक भारतीय थिंक टैंक से भी निरंतर मिल रहे हैं। इस वेबसाइट की एक खबर की बानगी देखिए- हाल में भारत स्थित चीनी दूतावास के मिनिस्टर-कांसुलर ली बीच्येन ने भारतीय थिंक टैंक वीआईएफ़, आईसीएस और ओआरएफ़ आदि संस्थान जाकर भारतीय सीमा टुकड़ी के चीन-भारत सीमा क्षेत्र के सिक्किम भाग में सीमा पार घटना को लेकर चीन के रुख पर प्रकाश डाला। मुलाकात में ली बीच्येन ने बताया कि भारतीय सेना द्वारा सीमा पार करने की “कार्रवाई” ने चीन की प्रादेशिक संप्रभुता को नुकसान पहुंचाया है और अंतर्राष्ट्रीय कानून के बुनियादी मापदंड का उल्लंघन किया है। चीन ने भारत से तुरंत चीन की प्रादेशिक भूमि से हटने की मांग की है।

उधर लोबल टाइम्‍स की तरफ से चीन को नसीहत देते हुए कहा गया है कि यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है तो चीन को भारत का जवाब देने के लिए तैयार रहना चाहिए। लेख में 1962 के बाद भारत पर लगातार उत्तेजित करने का आरोप लगाया गया है। इसमें लिखा गया है कि चीन को भविष्य में होने वाले सभी तरह के टकरावों के लिए तैयार रहना चाहिए। मेरे जैसे कुछ पत्रकारों का मानना है कि कश्मीर सीमा पर भारत की ओर से निरंतर आतंकियों और पाकिस्तानी फौज को जो मुंहतोड़ जवाब मिल रहा है उस लड़ाई को कमजोर करने के लिए चीन ने सिक्किम की ओर भारत की फौज को उलझा दिया है। दार्जिलिंग में जो उग्र आंदोलन चल रहा है उसको लेकर बंगाल की ममता सरकार को आशंका है कि इस हिंसा के पीछे चीन है।

इस बीच अमेरिका के दो शीर्ष परमाणु विशेषज्ञों का कहना है कि भारत अपने परमाणु हत्यारों के जखीरे को लगातार आधुनिक बनाता जा रहा है। अब तक पाकिस्तान को नजर में रखकर परमाणु नीति बनाने वाले इस देश का ध्यान अब चीन की तरफ ज़्यादा है। डिजिटल जर्नल ‘आफ्टर मिडनाइट’ के जुलाई-अगस्त अंक में प्रकाशित एक आलेख में यह दावा भी किया गया है कि भारत अब एक ऐसी मिसाइल विकसित कर रहा है, जिससे दक्षिण भारतीय बेसों से भी पूरे चीन पर निशाना साधा जा सके। इस मिसाइल की चर्चा विदेशों में भी है।

क्या चीन भारत की फौजी ताकत को कमजोर समझने की भूल कर रहा है? या भारत चीन की सैन्य शक्तियों का आकलन करने में विफल है। चीन डोकलाम में भूटान की सरहद से दो किलोमीटर भीतर सड़क बनाने की कोशिश कर रहा था जिसे भारतीय फौज ने रोक दिया। यह बात एक महीना पहले की है। तब से दोनों देशों की सेना वहां आमने-सामने डटी हुई है। चीन एक इंच भी पीछे हटने कौ तैयार नही है और न ही चीन की धमकी से भारत पीछे जाने कौ तैयार है। आक्सीजन की कमी के कारण दोनों देशों की फौज को परेशानी हो रही है। बहरहाल, हर दो घंटे पर वहां सैनिको की ड्यूटी बदली जा रही है। जाड़े तक यह विवाद जारी रहा तो चीन की सेना के लिए इस इलाके की छंट झेलना आसान नहीं होगा। ऐसे में जंग हुई तो अक्टूबर तक ही संभव है।

पर सवाल है कि क्या युद्ध होगा? अगर युद्ध होगा तो क्या एक साथ चीन और पाकिस्तान- दो मोर्चों पर लड़ा जाएगा? अगर दो मोर्चों पर जंग होगी तो एयरफोर्स इस चुनौती से निपट सकेगी या नहीं? फिलहाल भारत को पाकिस्तान पर बढ़त हासिल है। भारतीय सेना, पाकिस्तान की फौज से दोगुनी ताकतवर है। एयरफोर्स की ताकत पाकिस्तान से करीब डेढ़ गुना ज्यादा है। वहीं नौसेना की ताकत पाकिस्तान की नेवी से तीन गुना ज्यादा है। लेकिन चीन से मुकाबले की सूरत में हालात इसके उलट हो जाते हैं। अगर हम चीन और पाकिस्तान की ताकत को जोड़ दें तो भारतीय सेनाओं की ताकत बेहद दयनीय नजर आती है. दोनों देशों से एक साथ मुकाबले के लिए हमें अपना रक्षा बजट 50 फीसद बढ़ाना होगा.

 

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