लोहा ही लोहा को काट सकता है राजनीति में

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पहले सब लुटेरे थे अब कुछ ही धनपशु लुटेरे बचे हैं जो मोदी की इमेज को बनाये रखने में काम करते दिख रहे हैं। पीएम मोदी ईमानदार हैं, राष्ट्रवादी हैं। सबसे बढ़कर देश को आगे बढ़ाने में लगे हैं। ऐसा नहीं कि मोदी की तरह ही बीजेपी में और नेता नहीं। हैं लेकिन अभी उनकी औकात मोदी के सामने कुछ भी नहीं।

अखिलेश अखिल, वरिष्ठ पत्रकार, नई दिल्ली

राजनीति में बेदाग़ छवि की अपनी अहमियत है। राजनीतिक पेंच भिड़ाना और अपने अस्तित्व को बनाये रखना दो अलग-अलग बातें हो सकती हैं। कोई जरुरी नहीं कि सफल राजनेता बेदाग़ नहीं होंगे। और यह भी सही है कि बेदाग़ रहकर कोई राजनीति में सफल हो जाय ! राजनीति खेलना एक बात है और बेदाग़ रहना दूसरी बात। लेकिन अगर किसी में राजनीति को भांपने और बेदाग़ बने रहने का गुर मौजूद है तो कलयुग में उसे नायक या महानायक ही कहा जाएगा। ये तमाम बातें इसलिए कही जा रही हैं कि बदलती राजनीति और जनता के बदलते मिजाज को देखते हुए हमारे सामने दो चेहरे सामने दिख रहे हैं जिनकी राजनीति भी खूब सराही जा रही है और जिनके दामन भी बेदाग़ हैं। ये दो चेहरे हैं पीएम नरेंद्र मोदी और बिहार के सीएम नीतीश कुमार। बहुत सारे लोगों को इन दोनों नामों पर आपत्ति हो सकती है और इनके बेदाग़ चेहरों को लेकर बहुत सारे तर्क भी उनकी झोली में भरे हो सकते हैं लेकिन जिस तरह की राजनीति अभी चलती दिख रही है उसमे मोदी और नीतीश की राजनीति के सामने सबकी राजनीति कमजोर दिख रही है।
लगभग 20 राज्यों में बीजेपी और एनडीए की सरकार है। आँख उठाकर देख लीजिये कि इन 20 राज्यों में मोदी के बराबर के कोई नेता नहीं। कोई ऐसा मुख्यमंत्री नहीं जो मोदी के साथ आधे घंटे बैठकर भ्रष्टाचार पर बहस कर ले और अपने को बचा ले। अधिकतर मुख्यमंत्री के दामन घपले ,घोटालों और आरोपों से भरे हैं। अधिकतर नेता परिवारवाद से ग्रस्त हैं। अधिकतर नेता देश की जनता के सामने चतुर और विश्वासघाती के रूप में विश्लेषित हो चुके हैं। सबके पास अकूत धन है और बेनामी संपत्ति भी। सबके सब झूठे और मदारी की भांति बंदरिया नाच दिखाने और देखने के आदी हैं । लेकिन मोदी के पास क्या है ? ना परिवार की माया और ना ही धन संचय की फ़िक्र। धन संचय किसके लिए? हाँ राजनीति करने के लिए और अपनी हस्ती बनाये रखने के लिए धन की जरुरत है जो पार्टी स्तर पर दायें-बायें करके जुगाड़ बड़े स्तर पर हो रहा है। पहले सब लुटेरे थे अब कुछ ही धनपशु लुटेरे बचे हैं जो मोदी की इमेज को बनाये रखने में काम करते दिख रहे हैं। पीएम मोदी ईमानदार हैं, धर्मभीरु हैं, राष्ट्रवादी हैं और सबसे बढ़ककर देश को आगे बढ़ाने में लगे हैं। ऐसा नहीं है कि मोदी की तरह ही बीजेपी में और नेता नहीं हैं। हैं लेकिन अभी उनकी औकात मोदी के सामने कुछ भी नहीं। आज बीजेपी ही मोदी हैं और मोदी ही बीजेपी हैं। बाकी सब विदूषक। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। कल तक जो भ्रष्ट थे आज मौन हैं। कल तक जो लूट करते थे आज शांत हैं। कल तक जो बंदरबांट कर रहे थे घिघिया रहे हैं। कारण एक ही है कि सामने मोदी का ईमानदार चेहरा खड़ा है। इस चेहरा के सामने विपक्ष बेदम है। धराशायी है। भौंचक है और दिग्भ्रमित भी। कारण है ईमानदार चेहरे के सामने कोई टिकता नहीं। सच के आगे कोई बकता नहीं। मोदी के साढ़े तीन साल में देश को क्या मिला, देश ने कितनी प्रगति की, देश के लोगों में कितना विश्वास जगा इस पर बहस हो सकती है लेकिन मोदी के चेहरे से बीजेपी के भीतर और बाहर किसी की तुलना करना कठिन है। यही वजह है कि बीजेपी अभी अजेय सी दिख रही है। लेकिन राजनीति अजेय नहीं होती। सबका नाश और सबका बदलाव निश्चित है। सबका समय भी निश्चित है लेकिन अभी मोदी की राजनीति चमक रही है।
उधर बिहार की राजनीति उफान पर है। महागठबंधन की राजनीति शक के घेरे में हैं। महागठबंधन की सरकार बचेगी या जायेगी इसको लेकर पटना से लेकर दिल्ली और देश के सभी नगरों में चर्चा जारी है। सब जानते हैं की महागठबंधन की राजनीति बीजेपी के लिए शुभ नहीं। जातीय गणित की इस राजनीति को तोड़े बिना बीजेपी के लिए अगला चुनाव भारी पड़ सकता है। उधर सरकार के मुखिया नीतीश कुमार की अपनी राजनीति है जो चारो तरफ महक रही है। दागी और भ्रष्टाचार जैसे शब्दों से नीतीश को भी परहेज है। सामाजिक सोंच और राष्ट्र चिंतन में वे कभी कभी मोदी से भी आगे दीखते हैं। परिवारवादी राजनीति और बेदाग़ दामन से नीतीश की प्रतिष्ठा देश के और नेताओं और मुख्यमंत्रियों से काफी आगे है। पीएम मोदी नीतीश से मिलकर पुलकित हो जाते हैं तो नितीश भी मोदी से मिलकर भावविह्वल हो जाते हैं। राजनितिक रूप से दोनों एक दूसरे के शत्रु हैं लेकिन देश ,राष्ट्र ,मानवता और विकास की राजनीति में नीतीश की कोई शानी नहीं। लेकिन महागठबंधन की राजनीति को वे भला छोड़ कैसे सकते। लालू परिवार पर घपले ,घोटाले के आरोप है। लेकिन नीतीश की सरकार में आरोपी किसी पद पर बना रहे ,यह नीतीश को कैसे पसंद हो सकता है। उनके विश्वासी चेहरे का जो सवाल है। नितीश के लिए सरकार की बलिदानी हो सकती है लेकिन चेहरे पर दाग लग जाए यह भला वे क्यों चाहे। यही चमकता चेहरा नितीश को आज की राजनीति में उन्हें सबसे जुदा करता है। यही विश्वश्नीयता उनकी पूंजी है और राजनीतिक धरोहर भी। और धरोहर को कोई कैसे भूल जाए।
देश की राजनीति कुछ भी कहे लेकिन मोदी के सामने अगर नीतीश का चेहरा सामने आ जाए और विश्वश्नीयता के आधार पर वोटिंग हो जाए तो छोटे दल वाले नीतीश कमजोर नहीं पड़ेंगे। नितीश की यही सच्चाई बीजेपी को रास नहीं आ रही है। नितीश की यही ईमानदारी विपक्ष को कभी कभी परेशान कर रही है। आज विपक्ष एक जुट होकर नीतीश के चेहरे का घोष अगले चुनाव के लिए कर दे तो चुनावी राजनीति गंभीर हो जायेगी। कांग्रेस ऐसा नहीं चाहती। उसकी अपनी चाहत का अपना सम्मान है।
तो आगे की राजनीति क्या दिखती है ? महागठबंधन कहा जाती है ? सवाल यही है ना। नीतीश ने वसूलों की राजनीति की है। उन्हें गठबंधन की सरकार से कोई परहेज नहीं। वे खुश भी हैं और आगे भी खुश रहेंगे। लेकिन दागी चेहरों के साथ नहीं। संभव हैं कि अगर चार दिनों में तेजस्वी यादव इस्तीफा नहीं देते हैं तो नीतीश खुद इस्तीफा देंगे। यह बझी एक अजीब राजनीति इस देश को देखने को मिलेगा। और ऐसा हो गया तो फिर महागठबंधन की राजनीति कहा टिकेगी ? टूट जायेगी। नितीश इस्तीफा देकर शांत हो जाएंगे और फिर बाद में बीजेपी के सहयोग से सरकार बना लेंगे। बीजेपी भी यही चाहती है ताकि नीतीश किसी भी सूरत में पीएम मोदी के समानांतर खड़ा ना हो सके। अब राजनीति कांग्रेस ,राजद के पाले में हैं। तेजस्वी अगर इस्तीफा देते हैं तो लालू का भी मान बढ़ेगा और नीतीश का राजनीतिक कद व्यापक हो जाएगा। महागठबंधन में मजबूती आएगी और मोदी सरकार के दागियों पर प्रहार भी जारी होगा।

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