यह किसान आंदोलन शिवराज के लिए फंदा न बन जाए

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किसान आंदोलन ने अब राजनीति को जीवित कर दिया है। सरकार से लेकर विपक्षी पार्टियों ने  इस  हाथ धोना शुरू कर दिया है। शिराज सिंह चौहान ने जहां इस घटना के लिए विपक्षी कांग्रेस को जिम्मेदार बताया है वहीं कांग्रेस ने प्रदेश सरकार को किसान विरोधी बताकर अपनी जगह मजबूत कर रही है।

अखिलेश अखिल, वरिष्ठ पत्रकार/नई दिल्ली

अखिलेश अखिल, वरिष्ठ पत्रकार

मध्यप्रदेश का सुलगता किसान आंदोलन पूरे देश को अपनी जद में लेने को आतुर है। देश का हर सूबा किसानों की मौत पर भौंचक है। किसानों के देश में किसानों पर ही गोली! फिर सत्ता और सरकार किस बात की? फिर लोकतंत्र का क्या मतलब ? लेकिन किसानों की मौत बीजेपी को कुछ ज्यादा ही आहत कर रही है। किसानों की यह मौत सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान के लिए अग्नि परीक्षा की तरह है। अगले चुनाव में इसका जबाब पार्टी उनसे मांगेगी।

जब-जब गरीब, गुरबे, किसान और छात्रों पर पुलिस की गोलियां चली, हमारे नेताओं ने उस मौत पर अपनी राजनितिक रोटियां सेंकी। इसी कड़ी में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी खड़े दिख रहे हैं। ख़राब हालत को देखते हुए सूबे के किसान अपनी मांगों को रखने सरकार के पास पहुंचे थे। बात नहीं बनी और किसानों के तेवर उग्र होते चले गए। सरकार ने किसानों पर गोलियां चलवा दी। देखते ही देखते 6 किसान मौत के मुंह में समा गए। कितने घायल हुए इसका आंकड़ा भला किसके पास है? खबर तो ये भी आ रही है कि मध्यप्रदेश के किसान आंदोलन में मरने वालों की संख्या ज्यादा है जिसे सरकारी तंत्र छुपा रहा है। लेकिन किसानों ने देश को हिलाकर रख दिया है।
गुजरात, बिहार, उत्तरप्रदेश से लेकर पंजाब के किसान भी इस मौत को ह्त्या बता रहे हैं। चूंकि मरने वाले 5 किसान पाटीदार समाज से आते हैं इसलिए पाटीदार नेता हार्दिक पटेल भी गुजरात से फरमान जारी करते दिख रहे हैं। हार्दिक ने कहा है कि देश की बीजेपी सरकार किसान विरोधी है। उधर, महाराष्ट्र से शिवसेना केंद्र सरकार पर नजर आ रही है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो बाकायदा अपने वरिष्ठ नेता शरद यादव को किसान आंदोलन को भांपने और किसानों के समर्थन में खड़ा होने के लिए भेज दिया है। उम्मीद है कि आज कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी मृतक किसानों के परिजन से मिलने  घटना सथल का दौरा करने वाले हैं।
उधर मामला को गंभीर होते देख सूबे के मुख्यमंत्री ने मृतक के परिजनों को एक-एक करोड़ मुआबजा राशि देने की घोषाण की है। मुआवजे के अलावा मृतक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी भी दी जाएगी। मध्यप्रदेश के इतिहास में यह सबसे बड़ा मुआवजा है। इस मुआवजे के जरिए शिवराज सिंह चौहान खुद को मिले किसान हितैषी मुख्यमंत्री का तमगा बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन किसान आंदोलन ने अब राजनीति को जीवित कर दिया है। सरकार से लेकर विपक्षी पार्टियों ने  इस  हाथ धोना शुरू कर दिया है। शिराज सिंह चौहान ने जहा इस घटना के लिए विपक्षी कांग्रेस को जिम्मेदार बताया है। वही कांग्रेस ने प्रदेश सरकार को किसान विरोधी बताकर अपनी जगह मजबूत कर रही है। कांग्रेस के लिए मंदसौर की यह घटना किसी संजीवनी बूटी से कम।  नहीं अगले साल वहा चुनाव होने हैं।
मध्यप्रदेश का मंदसौर वो क्षेत्र है, जहां अफीम की पैदावार बड़ी मात्रा में होती है। दुनिया भर के ड्रग माफिया के लोग इस इलाके में सक्रिय हैं। इलाके की पूरी राजनीति किसानों को अफीम के कीमत दिलाने के ईद-गिर्द घूमती है। मंगलवार को हुए गोलीकांड के बाद शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने किसानों के पूरे आंदोलन को एक अलग दिशा देने की कोशिश की। राज्य की महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस ने एक बयान में कहा कि गोलीकांड के पीछे ड्रग माफिया है। कलेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह ने इनकार किया कि गोली चलाने का आदेश एसडीएम द्वारा दिया गया था।
उधर शिवराज सरकार और इस कोशिश में लग गई है कि गोलीकांड का ठीकरा कांग्रेस के सिर फोड़ दिया जाए। दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरी तरह से अफसरशाही के नियंत्रण में नजर आ रहे हैं। अधिकारियों ने ही मुख्यमंत्री को यह सलाह दी थी कि वे आंदोलनकारी किसानों से बात करने के बजाए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के किसान संगठन से बात करें। अधिकारियों की सलाह थी कि इससे बीजेपी को राजनीतिक लाभ होगा। यही से कहानी बिगड़ती चली गयी। लेकिन अब बीजेपी के भीतर भी राजनीति चल निकली है। 13 से सत्ता में बैठे शिवराज के विरोधी भी कम नहीं। वे पीएम मोदी और अमित शाह के निशाने पर हैं। साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश एक मात्र ऐसा राज्य था, जहां कि भारतीय जनता पार्टी की राज्य इकाई और बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री के तौर पर घोषित उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के फोटो का उपयोग चुनाव प्रचार में नहीं किया था। मोदी और शाह इसे भूले नहीं है। चौहान, लालकृष्ण आडवाणी के करीबी माने जाते थे। आडवाणी ने उनका नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट करने के लिए आगे बढ़ाया था। यह बात और है कि प्रधानमन्त्री ने अभी तक शिवराज पर कोई आरोप नहीं लगाया है और  व्यापम घोटाले पर कुछ बोला है लेकिन माना जा रहा है कि इस किसान आंदोलन के जरिये अब  पंख काटे जाएंगे।

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