सरकार द्वारा जीएसटी के लिए ड्राफ्ट मॉडल कानून में वर्तमान बयान के लिए कुछ प्रस्ताव हैं। जो धीमे-धीमे, लेकिन निश्चितता से, लगभग हर छोटे व्यवसाय को अंततः बंद होने की तरफ बढ़ाएंगे| यह सरकार की मंशा नहीं है, यह बस अन्य अच्छे इरादों का एक अप्रत्याशित परिणाम है|
विकास कुमार भट्ट / नई दिल्ली

इसमें कोई शक नहीं है कि यह बाजार में एक अच्छी समानता लाएगा और उद्योगपतियों के लिए भारतीय बाजार को खोलेगा| अंतरराज्यीय व्यापार की बाधाएं ख़त्म हो जाएंगी और वर्तमान की तुलना में हर एक इंसान अब ज्यादा ग्राहकों और आपूर्तिकर्ताओं तक पहुँच सकेगा| केवल कुछ ही लोग कर की चोरी करके या कानून के प्रावधानों का अनुचित लाभ उठा पाएँगे और इससे ज्यादा उद्योगपति बढ़ेंगे क्योंकि प्रतिस्पर्धा का स्तर एक ही हो जाएगा| कई मौजूदा करों को अवशोषित करके एक ही कर व्यवस्था में बदलने से समय और अनुपालन की लागत कम हो जाएगी|
यह उत्सव का समय है, छोटे व्यापारियों को छोड़कर
सामान्यतः, छोटे व्यवसाय ‘अधिक ईमानदार’ होते हैं और आम तौर पर “अधिक नकदी प्रवाह की समस्याओं” से पीड़ित हैं।
चाहे बढ़ी हुई सम्बंधित ईमानदारी सामाजिक कलंक की वजह से आई हो या जब समस्याओं का पता चले तो हल करने की असमर्थता से या बेईमानी का लाभ इतना भी बडा नही है कि प्रलोभन दे सके या केवल मूल नैतिक सूत्र का परीक्षण पर्याप्त प्रलोभन के साथ नही किया जा रहा है और वास्तव में एक विवादास्पद मुद्दा है। यह सर्वविदित है कि माइक्रो लेन्डिग क्षेत्र अन्य ऋण कारोबार की तुलना में उच्चतम चुकौती का अनुपात रखता है|
वहीं, लघु व्यवसाय नकदी प्रवाह की लगातार असमानता का झेलते हैं| यहां तक कि अपनी दिनचर्या में माल को बेचने से प्राप्त पैसा हासिल करने में एक सप्ताह की देरी भी गड़बड़ कर देती है| परिवार में एक शादी हो? इस प्रक्रिया को ठीक होने मे कई सप्ताह लग जाते हैं। आशाजनक नीलामी या सामग्री प्रस्ताव जो उन्हें ज्यादा मुनाफा दे सकता है और उन्हें इसका लाभ लेने के लिए अपने नकदी चक्र में बदलाव करना पड़ता है। एक कर्मचारी के परिवार में एक शादी है? उनकी मदद करने की इच्छा उनके नकदी प्रवाह के प्रबंधन की लागत से आती है।
सरकार द्वारा जीएसटी के लिए ड्राफ्ट मॉडल कानून में वर्तमान बयान के लिए कुछ प्रस्ताव हैं। जो धीमे-धीमे ,लेकिन निश्चितता से, लगभग हर छोटे व्यवसाय को अंततः बंद होने की तरफ बढ़ाएंगे| यह सरकार की मंशा नहीं है, यह बस अन्य अच्छे इरादों का एक अप्रत्याशित परिणाम है| यह सही होने लायक है, यदि प्रदान किए गये कारण और परिणाम, सराहे जा रहे हो|

सम्बंधित और ज्यादा भयानक प्रावधान हैं जो सरकार ‘अनुपालन रेटिंग’ को सार्वजनिक करने की मंशा है– जिससे आपके खरीदने से पहले आपको पता चल जाएगा चाहे आपके प्रदायक की अच्छी रेटिंग हो या बुरी|
उद्देश्य यह है कि चूँकि आपका इनपुट टैक्स क्रेडिट प्रदायक की ‘गुणवत्ता’ पर निर्भर है आप ‘खराब’ रेटिंग वाले लेगो से खरीदने से बचने की कोशिश करेंगे- जिसका मतलब है कि लोगों को एक खराब रेटिंग से बचने के लिए वे सब कुछ करेंगे| और रेटिंग्स “खराब” हो जाती है सिर्फ इसलिए नहीं की आपके डाटा भरने में देरी है, बल्कि इसलिए क्योंकि हो सकता है आपके भुगतान में देरी है।
सारांश में, जब आप इन सारे प्रावधानों को एक साथ लेते है, तो कोई भी कठिनाई जिसका एक छोटे व्यवसाय को सामना करना पड़ता है वह अब दिखाई देगा और जनता की जानकारी में आ जाएगा और उससे एक स्नोबॉल इम्पेक्ट होगा. तो, जब भी आप किसी परेशानी का सामना करते है, वह परेशानी अगले महीने और बड़ी हो जाएगी क्योंकी आपके खरीदार “सुरक्षित” व्यवसाय करना शुरू करेंगे और दूसरों से खरीदेंगे (यह तथ्य की बाजार अब एक “खुला बाज़ार” है एक वरदान है). यह आम रूप से आपकी परेशानी बढ़ा देगा, आपके भुगतानों में देरी होगी और/या आपके रेटिंग्स और ख़राब होंगी, आप और ज्यादा ग्राहको को खो देंगे जब तक की आपका व्यवसाय बंद नहीं हो जाता।
छोटे व्यवसायों की “आपातकालीन पैसों की जरुरत जीएसटी का भुगतान करने और ख़राब रेटिंग से बचने की” ज़रुरत उदार परिदृश्य और मूल्यों के भार की ओर लेजा रही है, जिसे वह ज्यादा देर तक उठा नहीं पाएँगे। वह मूल्यों को अर्थशाश्त्र के पैमाने पर व्यवस्थित नहीं कर पाएँगे। अब, सिर्फ उन्हें अपना व्यवसाय चलते रहना निषेधात्मक हो जाएगा.
और विरोधाभाष यह है की, यह अपेक्षित था की जीएसटी अनुपालन मूल्य घटा देगा !

ऐसी अफवाह है की कानुन में ऐसे अनिश्चित प्रावधान का कारण आईजीएसटी के अलग अलग राज्यों में वितरण में कठिनाई की वजह से है, खासकर तब जब एक व्यवसाय उसका भुगतान नहीं कर पाता। इससे निपटने के दुसरे तरीके सरकार द्वारा विचाराधीन है, लेकिन तत्कालीन कानून का प्रारूप ऊपर लिखे प्रावधानों को दर्शाता है- लेकिन अनौपचारिक भाव यह है की ये परेशानी बाद में सुलझा ली जाएगी, और पहला कार्यान्वयन इस क़ानूनी प्रारूप के साथ हो।
यह बाद में सुलझाने वाली समस्या नहीं है. अस्थायी मौत जैसी कोई चीज नहीं होती है। बहुत सारे व्यवसाय गलत तरीके से ब्रांड किये जाऐंगे की “उनके साथ सौदा करने का जोखिम ही क्यूँ उठाएँ” और अगर कानून बदल भी गया तो वह इससे उबर नहीं पाएँगे. इसका उलट भी सत्य है. अगर सरकार को कोई बहुत बड़ा टैक्स की धोखाधड़ी नहीं मिलती है बिना इस प्रावधान के भी, तो वह बाद में भी इसे ला सकते हैं “नियंत्रित करने के आखिरी उपाय” की तरह।
बदलाव का आग्रह किया जा रहा है की – “पेमेंट” को “वैध रिटर्न” के स्टेटमेंट के साथ ना जोड़ें। ‘वैध रेटर्न’ वही रखें जिसकी गणना सही हो, और टैक्स पेअर के दायित्व को परिभाषित करता हो। सिर्फ आपूर्तिकर्ता के “वैध रिटर्न” को अकेला आधार रखे जिससे ग्राहक “इनपुट क्रेडिट” की मांग कर सकता हो (यह पहले से ही तत्कालीन क़ानूनी प्रावधान है, सिवाय इसके की यह तभी ‘वैध’ होता है जब दायित्व का ‘भुगतान’ कर दिया गया हो)। यह सरल बदलाव व्यवसायों के रश्ते खोल देगा, अनुपालन बढ़ेगा, और बहुत ज्यादा धोखाधड़ी घटाएगा जीएसटी के त्रिकोणीय प्रकृति के कारण।
पेमेंट को टैक्स क्रेडिट के साथ लिंक करना एक ‘छोटी गलती’ नहीं है बल्कि एक ‘बहुत बड़ी विसंगति’ है.
3 व्यव्सायों की एक सरल चेन लेते हैं, मान लीजिये कंपनी अ 1 करोड़ + 20 लाख जीएसटी (टोटल वैल्यू 1.2 करोड़) कंपनी बी को देता है। कंपनी अ 20 लाख का टैक्स सरकार को भी देता है।
अब कंपनी बी 1.2 करोड़ + 24 लाख जीएसटी (टोटल वैल्यू 1.24 करोड़) कम्पनी सी को देता है। कंपनी बी 24 लाख का भुगतान करने का उत्तरदायी है, और 20 लाख का क्रेडिट लेने का। इसलिए, सरकार को 4 लाख देने की जरुरत है. मगर वह किसी कारन से यह भुगतान नहीं कर पाता।

अब अगर कंपनी बी ने टैक्स दे दिया होता तो, सरकार द्वारा पूरा वसूला हुआ टैक्स कंपनी अ द्वारा 20, कंपनी बी द्वारा 4, और कंपनी सी द्वारा 6 – या पुरे 30 लाख होता। लेकिन, जब कंपनी बी अपना टैक्स समय पर नहीं भरती है, तो सरकार 50 लाख वसूल करती है! 20 कंपनी अ द्वारा और 30 कंपनी सी द्वारा।
अचानक से, कंपनी बी द्वारा टैक्स ना भरना रेवेन्यू डिपार्टमेंट के लिए एक बोनस साबित होता है! और यह भी संभव है की कंपनी बी अपनी मर्जी से या सरकार के रिकवरी एक्शन द्वारा, अपने 4 लाख के टैक्स का भुगतान कर दे. जो सरकार के कुल टैक्स वसूली को 50 लाख से भी ज्यादा बढ़ा देगा!
कानून की यह अव्यवस्थता स्वाभाविक रूप से अनिशचित हो जायगी। अचानक कंपनी बी का टैक्स नहीं भरना देश के लिए अच्छे नजरिये से देखा जाएगा (जो सही नहीं है), क्यूंकि इससे देश का कर भुगतान बढेगा!
यह निश्चित रूप से कानून का इरादा नहीं है, और इसे वैध भी नहीं कहा जा सकता.
यह बहुत जरुरी है की हम सब, नागरिक के रूप से, सरकार की मदद करें एक कानून बनाने में जिससे उसकी क्षमता के अनुशार फायदे हो, ना की वह परेशानियाँ उत्पन्न करे जो नहीं करनी चाहिए।
तत्कालीन कानून पहले से ही टैक्स चोरी के खिलाफ सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं, सिर्फ कुछ छोटी छोटी चीजें ठीक करने की जरुरत है ( उदहारण के लिए आईजीएसटी) – और इस कृत्रिम और अनिशचित प्रावधान को इस सरल प्रावधान से बदला जा सकता है कि “इनपुट टैक्स क्रेडिट उन्ही इनवाईसिस पर उपलब्ध हो जो जीएसटीएन के साथ रजिस्टर्ड है”. असल में, तत्कालीन कानून प्रोविजनल इनपुट क्रेडिट की अनुमति देता है तब भी जब इनवॉइस रजिस्टर ना हो, और व्यवसाई इस ‘विलाशिता’ को छोड़ने में खुश होंगे, अगर ‘पेमेंट लिंकेज’ हटा दिया जाए।
चलिए, हम सब इस महान जीएसटी कानून के लिए प्रार्थना करे जिसका हम खुली बाँहों से स्वागत करेंगे हैं, और वो नही जिसके तहत हम संघर्ष करें|
