नोटबंदी और करेंसी किंग डेलारु का अनोखा खेल

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राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ गद्दारी करने  की वजह से काली सूची में डाली गयी इंग्लैण्ड की डेलारु कंपनी के बारे में खबर आ रही है कि भारत सरकार इसी कंपनी के साथ समझौता कर फिर से भारतीय करेंसी की छपाई कर रही है।

अखिलेश अखिल

अखिलेश अखिल
मध्यप्रदेश के होशंगाबाद कोर्ट दाखिल एक मुक़दमे को लेकर सरकार की नियत पर सवाल खड़े होने लगे हैं। खबर है कि होशंगाबाद अदालत में दुनिया के कई देशों के लिए करेंसी नोट  बनाने वाली इंग्लैण्ड की  डेलारु कंपनी पर भारत में ख़राब क्वालिटी का पेपर सप्लाई करने के आरोप में मुकदमा चल रहा है। यह मुकदमा 2016 में इस कंपनी के खिलाफ दर्ज हुआ है। माना जा रहा है कि 2010-2011 में तत्कालीन भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित इस कंपनी को काली सूची से निकालकर मोदी सरकार काम करवा रही थी। और इसी कंपनी के द्वारा आपूर्ति किये गए कागज़ से ही 100, 500 और  हजार के नोट छापे गए थे।

आम आदमी पार्टी के नेता दिलीप पांडेय ने आरोप लगाया है कि’ जब मोदी सरकार का उक्त कंपनी के साथ कोई सरोकार ही नहीं है जैसा कि जेटली ने नोटबंदी के दौरान कहा था तो फिर इस कंपनी पर मुकदमा क्यों चल रहा है ? सच तो यही है कि इस कंपनी ने एक जैसी क्वालिटी और आकार प्रकार वाले कागज़ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को भी दिया है। जाहिर है कि  सरकार ने इस काली सूची वाली कंपनी को काम देकर राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता किया है।
सरकार को इस मसले पर जबाब देना चाहिए। बता दें कि इस कंपनी का नाम पनामा काली सूचि
में भी दर्ज है।

देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ गद्दारी करने की वजह से काली सूची में डाली गयी इंग्लैण्ड की डेलारु कंपनी के बारे में खबर आ रही है कि भारत सरकार इसी कंपनी के साथ समझौता कर फिर से भारतीय करेंसी की छपाई कर रही है। अगर ऐसा है तो यह भारतीय सुरक्षा व्यवस्था के लिए बेहद खतरनाक माना जा सकता है। प्रतिबंधित डेलारु के बारे में इस तरह की ख़बरें इसलिए आ रही है कि होशंगाबाद करेंसी प्रेस में ख़राब पेपर आपूर्ति करने के आरोप में  भारत की अदालत में 2016 में एक मुकदमा दर्ज होने की बातें सामने आ रही है। सवाल है कि जब इस कंपनी के साथ भारत सरकार का कोई लेना देना ही नहीं है तो फिर 2016 में इस ब्लैकलिस्टेड कंपनी पर मुकदमा क्यों किया गया ?

पिछले साल नवम्बर में नोटबंदी के दौरान इस ब्रिटिश कंपनी डेलारु की चर्चा सामने आयी थी। चर्चा  इस बात को लेकर हुयी थी कि जब यूपीए सरकार के दौरान 2010 -2011 में  सीबीआई ने जांच के दौरान इस कंपनी को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक मानते हुए इसे भारतीय करेंसी नोट छपाई से अलग करते हुए इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था तो फिर इसी कंपनी के जरिये नए नोट क्यों छपवाए जा रहे हैं ? काफी हंगामा हुआ था इस मसले पर। बाद में वित्त
मंत्री अरुण जेटली ने ट्वीट के जरिए कहा था कि ‘इस कंपनी का हमारे नॉट करेंसी की छपाई से कोई लेना देना नहीं है।  इस कंपनी से भारत सरकार का कोई लेना देना नहीं है। ‘

गौरतलब है कि इंग्लैण्ड की यह डेलारु कंपनी दुनिया के कई देशो के लिए करेंसी बनाने का काम करती है। जाहिर है इस कंपनी की ताकत ज्यादा है। जिस कंपनी पास किसी भी देश की करेंसी छपने या फिर उसके लिए कागज आपूर्ति करने से लेकर कोई और कोई तकनीक देने की छमता हो वह कुछ भी कर सकती है। भारत की करेंसी पर इस कंपनी का प्रभाव कई वर्षों तक रहा। लेकिन 2010-2011 के दौरान सीबीआई जांच में यह पता चला था कि यह कंपनी भारत को कमजोर
करने के लिए पाकिस्तान का साथ दिया है।

5 साल पहले केंद्र सरकार में वित्त राज्य मंत्री रहे नमो नारायण मीणा ने राज्य सभा को बताया था कि ‘खुफिया रिपोर्ट के आधार पर इस ब्रिटिश कंपनी पर आरोप है कि इस कंपनी ने पाकिस्तान स्थित नकली भारतीय नोट छपने वाली प्रेस को मदद कर रही है। हालत ये है कि पाकिस्तान से आने वाले नकली नोट को हमारे बैंक कर्मचारी भी नहीं पकड़ पाते। ‘ फिर भारत सरकार ने डेलारु को काली सूचि में दाल दिया था।
नोटबंदी के दौरान डेलारु कंपनी की चर्चा होने लगी थी। खबरे आ रही थी कि यही कंपनी मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद फिर हमारी करेंसी छपाई  में दखल दे रही है और सरकार ने उसे काली  कर दिया है। यह बात और है कि वित्त  मंत्री जेटली ने  इस खबर को निराधार बताया था लेकिन अब जबकि होशंगाबाद अदालत में इस कंपनी के ऊपर मुकदमा दर्ज हुआ है तब ऐसा लगता है कि दाल में कुछ काला है।

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