नर्मदा और शिव की अनसुनी कहानी

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amarनर्मदा नदी मध्य प्रदेश के अमरकंटक से निकलती है। नदी के उद्गम स्थल पर नर्मदा माई और शिव का सुंदर मंदिर बना है। प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है कि नर्मदा सात कल्पों तक अमर है। प्रलयकाल में शंकर भगवान इसी के तट पर अपना तीसरा नेत्र खोलते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव और उनकी पुत्री नर्मदा यहां निवास करते थे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नर्मदा की उत्पत्ति शिव की जटाओं से हुई है, इसीलिए शिव को जटाशंकर भी कहा जाता है। अमरकंटक में नर्मदा कुंड स्थित मां नर्मदा का मुख्य मंदिर सफेद रंग का है। यह कुंड के बिल्कुल बगल में स्थित है। कहा जाता है कि नर्मदा कुंड का निर्माण आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य (788-820ई.) ने करवाया था। यहां नर्मदा माई के मंदिर का निर्माण उसके बाद हुआ।

आदि शंकराचार्य ने यहां पातालेश्वर मंदिर का निर्माण कराया। 18वीं सदी में यहां नागपुर के भोंसले शासकों ने केशव नारायण मंदिर का निर्माण कराया। यह भी कहा जाता है कि मां नर्मदा का मंदिर रेवा नायक ने बनवाया। वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार रीवा के राजा गुलाब सिंह ने 1939 में कराया था। मंदिर सुबह 6 बजे खुलता है। शाम को 7 बजे मां नर्मदा की आरती होती है। नर्मदा कुंड में भक्तों को स्नान की अनुमति नहीं है। स्नान के लिए मंदिर के बगल में अलग से कुंड बना है। नर्मदा कुंड के चारों ओर कई मंदिर बने हुए हैं। हर साल माघ शुक्ल सप्तमी को नर्मदा जयंती मनाई जाती है। इस उत्सव की सबसे उल्लेखनीय बात ये है कि लोग प्रार्थना के रूप में इस पवित्र नदी में दीपक छोड़ते हैं। महाशिवरात्रि और नाग पंचमी पर भी यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं